राष्ट्रभक्ति ले हृदय मे, हो खडा यदि देश सारा
संकटों पर मात कर, यह राष्ट्र विजयी हो हमारा ॥ धृ.।।
क्या कभी किसने सुना है, सूर्य छिपता तिमिर भय से
क्या कभी सरिता रुकी है, बांध से वन पर्वतों से
जो न रुकते मार्ग चलते, चीर कर सब संकटों को
वरण करती कीर्ती उनका, तोड कर सब असुर दल को
ध्येय-मन्दिर के पथिक को, कन्टकों का ही सहारा ॥ 1।।
हम न रुकने चले है, सूर्य के यदि पुत्र है तो
हम न हटने को चले है, सरित की यदि प्रेरणा तो
चरण अंगद ने रखा है, आ उसे कोई हटाए
दहकता ज्वालामुखी यह, आ उसे कोई बुझाए
मृत्यु की पी कर सुधा, हम चल पडेंगे ले दुधारा ॥ 2।।
ज्ञान के विज्ञान के भी, क्षेत्र में हम बढ पडेंगे
नील नभ के रूप के, नव अर्थ भी हम कर सकेंगे
भोग के वातावरण मे, त्याग का संदेश देंगे
त्रास के घन बादलों से, सौख्य की वर्षा करेंगे
स्वप्न यह साकार करने, संघटित हो राष्ट्र सारा ॥ 3।।